Dwijapriya sankashti 2 March 2021 द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत-पूजा विधि, कथा, महत्व एवं चंद्रोदय शुभ मुहूर्त

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Dwijapriya sankashti 2 March 2021 द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत-पूजा विधि, कथा, महत्व एवं चंद्रोदय शुभ मुहूर्त

 

पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। फाल्गुन महीने में पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है, तो आज जानते है द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत-पूजा विधि, कथा, महत्व एवं चंद्रोदय शुभ मुहूर्त के बारे में बताते हैं। 

संकट हरने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस साल द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 2 मार्च मंगलवार के दिन को पड़ रही है। इस दिन गणेश भगवान के 32 स्वरूपों में से छठें रूप की पूजा होती है। गणेश जी इस रूप की आराधना से अच्छा स्वास्थ्य तथा सुख-समृद्धि मिलती है।

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी मंगलवार, मार्च 2, 2021 को

संकष्टी के दिन चन्द्रोदय - 09:39 पी एम

चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - मार्च 02, 2021 को 05:46 ए एम बजे

चतुर्थी तिथि समाप्त - मार्च 03, 2021 को 02:59 ए एम बजे

संकष्टी चतुर्थी व्रत पूजा विधि  (Sankashti Chaturthi 2021 Puja Vidhi)

- संकष्टी चतुर्थी के दिन जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ पीले कपड़े पहनें.
- चौकी की चौकी पर साफ आसन बिछाएं और उसका गंगाजल का छिड़काव करें.
- अब चौकी पर भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र विराजित करें.
- भगवान गणेश को फूल माला चढ़ाएं.
- भगवान गणेश के आगे दीपक, अगरबत्ती और धूपबत्ती जलाएं.
- गणेश चालीसा पढ़ें और गणेश मंत्रों का जाप करें.
- भगवान गणेश की आरती करें.
- शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत को पूर्ण करें 

संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा 

संकष्टी चतुर्थी से सम्बन्धित पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में किसी शहर में एक साहूकार और उसकी पत्नी रहते थे। साहूकार दम्पत्ति को ईशवर में आस्था नहीं तथा वह निःसंतान थे। एक दिन साहूकार की पत्नी अपने पड़ोसी के घर गयी। उस समय पड़ोसी की पत्नी संकट चौथ की कथा कह रही थी। तब साहूकार की पत्नी ने उसे संकष्टी चतुर्थी के बारे में बताया। उसने कहा संकष्टी चौथ के व्रत से ईश्वर सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। तब साहूकार की पत्नी ने भी संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया तथा सवा सेर तिलकुट चढ़ाया। इसके बाद साहूकार की पत्नी गर्भवती हुई और उसे पुत्र पैदा हुआ। 

साहूकार का बेटा बड़ा हुआ तो उसने ईश्वर से कहा कि मेरे बेटे का विवाह तय हो जाए तो व्रत रखेगी और प्रसाद चढ़ाएगी। ईश्वर की कृपा से साहूकार के बेटे का विवाह तय हो गया लेकिन साहूकार की मां व्रत पूरा नहीं कर सकी। इससे भगवान नाराज हुए और उन्होंने शादी के समय दूल्हे को एक पीपल के पेड़ से बांध दिया। उसके बाद उस पीपल के पेड़ के पास वह लड़की गुजरी जिसकी शादी नहीं हो पायी थी। तब पीपल के पेड़ से आवाज ए अर्धब्याही ! यह बात लड़की ने अपनी मां से कहा। मां पीपल के पेड़ के पास आया और पूछा तो लड़के ने सारी कहानी बतायी। तब लड़की की मां साहूकारनी के पास गयी और सब बात बतायी। तब साहूकारनी ने भगवान से क्षमा मांगी और बेटा मिल जाने के बाद व्रत करने और प्रसाद चढ़ाने के लिए ईश्वर प्रार्थना की। इसके कुछ दिनों बाद साहूकारनी का बेटा उसे मिल गया और उसकी शादी हो गयी तभी से सभी गांव वाले संकष्टी चतुर्थी की व्रत करने लगे।